नई दिल्ली: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ( AMU ) के अल्पसंख्यक दर्जे पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के वाद काफी चर्चा हो रही है। सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने 4:3 के वहुमत से शुक्रवार को इस मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जो भविष्य में ऐसे संस्थानों के लिए मार्गदर्शक साबित हो सकता है। वीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कहा, 'केंद्र सरकार अपना पक्ष मजबूती से रखेगी।' AMU के पूर्व छात्रों और संस्था से जुड़े लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया। समझते हैं सुप्रीम कोर्ट का क्या है फैसला और क्यों है महत्वपूर्ण-
AMU का अल्पसंख्यक दर्जा क्यों महत्वपूर्ण है ?
AMU का अल्पसंख्यक दर्जा तय करता है कि यह यूनिवर्सिटी अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के उद्देश्य से चलाया जा रहा संस्थान है। संविधान के अनुच्छेद 30 के अनुसार, अल्पसंख्यक समुदायों को अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित और संचालित करने का अधिकार है । इस दर्जे का सीधा असर संस्थान में दाखिले, आरक्षण और प्रशासनिक स्वायत्तता पर पड़ता है।
इसे अल्पसंख्यक संस्थान क्यों माना जा सकता है ?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि किसी भी संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा केवल इस आधार पर समाप्त नहीं हो सकता कि उसे एक कानून के तहत स्थापित किया गया है। यदि जांच में यह निष्कर्ष निकलता है कि AMU की स्थापना मुस्लिम समुदाय द्वारा की गई थी, तो संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत उसे अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा मिल सकता है।
1967 के अजीज बाशा मामले में क्या फैसला दिया गया था ?
1967 के अजीज वाशा वनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने कहा था कि AMU को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता, क्योंकि इसे एक केंद्रीय कानून (AMU Act 1920) के तहत स्थापित किया गया था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि जिस संस्थान को सरकार ने स्थापित किया हो, वह अल्पसंख्यक दर्जा का दावा नहीं कर सकता।
क्या 1981 में संसद ने AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर कोई कानून बनाया था ?
हां, 1981 में संसद ने AMU एक्ट में संशोधन करके AMU को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा बहाल किया। लेकिन,इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2006 में इस संशोधन को असंवैधानिक करार दिया और कहा कि AMU को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं दिया जा सकता है। इसके बाद मामला 2019 में सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच (तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली बेंच) के पास आया और वहां से 7 जजों की संविधान पीठ को रेफर किया गया।
सुप्रीम कोर्ट नया फैसला किस बात पर आधारित है?
सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने 4:3 के वहुमत से 1967 के अजीज वाशा मामले में दिए गए फैसले को पलट दिया। अव कोर्ट ने तय किया है कि AMU के अल्पसंख्यक दर्जे का निर्धारण मौजूदा जजमेंट में दी गई व्यवस्था और इस वात पर आधारित होना चाहिए कि क्या इसकी स्थापना मुस्लिम समुदाय द्वारा की गई थी या नहीं?
अब इस मामले का अगला कदम क्या होगा ?
अव सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को एक नई वेंच को रेफर कर दिया है। चीफ जस्टिस नई वेंच गठित करेंगे, जो इलाहावाद हाई कोर्ट के फैसले के मद्देनजर AMU के अल्पसंख्यक दर्जे की वैधता पर अंतिम फैसला करेगी।
क्या यह फैसला सिर्फ AMU के लिए लागू होगा ?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में जो मापदंड तय किए हैं, वे भविष्य में अन्य संस्थानों पर भी लागू हो सकते हैं। इससे यह स्पष्ट होगा कि कौन-से शैक्षिक संस्थान अल्पसंख्यक संस्थान का दावा कर सकते हैं और उन्हें किन शर्तों का पालन करना होगा। कोर्ट ने शुक्रवार को यह भी साफ किया है कि अनुच्छेद 30 (1) से मिले अधिकार यूनिवर्सिटी पर भी लागू होते हैं । चीफ जस्टिस ने इसे तय करने के लिए कारकों की रूपरेखा तय की है कि क्या किसी अल्पसंख्यक ने किसी एजुकेशनल संस्थान की स्थापना की है। इसके तहत विचार, उद्देश्य और कार्यान्वयन के संकेत शामिल हैं।
अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा पाने के लिए क्या शर्तें होती हैं ?
अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा पाने के लिए यह साबित करना जरूरी है कि संस्थान की स्थापना और उद्देश्यों के पीछे अल्पसंख्यक समुदाय का योगदान है। यह भी जरूरी है। कि संस्थान ने अपने समुदाय के फायदे। के लिए इसे स्थापित किया हो। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि केवल अल्पसंख्यक समुदाय के लोग ही इसका लाभ उठा सकते हैं।
अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे का प्रभाव क्या होता है ?
अल्पसंख्यक दर्जा मिलने पर संस्थान को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत स्वायत्तता मिलती है। इसका असर यह होता है कि संस्थान अपने एडमिशन प्रोसेस, पाठ्यक्रम और प्रशासनिक नीतियों में कुछ हद तक स्वायत्त होते हैं।